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Pagli By Shivrani Devi | Nayee Kitaab Prakashan

  • Writer: Monika Satote
    Monika Satote
  • Jun 14
  • 2 min read

सही कहते हैं लोग, एक बार हिंदी की कोई किताब हाथ में ले लो, फिर उसका जादू ही अलग होता है। एक पढ़ो, फिर तो सिलसिला चल पड़ता है!

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मेरा मानना हैं की बदलाव सिर्फ आवाज़ उठाने से नहीं, बल्कि उसे बनाए रखने से आता है। सदियों से समाज में महिलाओं की स्थिति अक्सर दोयम दर्जे की रही है, कभी परंपराओं के नाम पर, तो कभी रिश्तों के नाम पर उन्हें चुप रहना पड़ा।


इस किताब में जब मैं "क्षमा" जैसी कहानी पढ़ती हूँ, जो विवाहेतर संबंध के बारे में है, या "पगली" जो एक विधवा की कहानी है, या "बलिदान" जो त्याग और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की बात करती है , तो मन में यही सवाल उठता है कि क्या महिलाएं सदियों से पीड़ित ही रही हैं? और क्या अब विद्रोही होना ही एकमात्र रास्ता बचा है? जैसे प्रेमा विद्रोही बनी थी "प्रेमा" इस कहानी मे?


यह सवाल बेहद गहरा है।



इस किताब की जो बात मुझे सबसे ज़्यादा पसंद आई, वो ये है कि इसकी सारी कहानियाँ बहुत सालों पहले लिखी गई थीं, फिर भी आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती हैं। विद्रोह यानी अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना, सवाल उठाना, अन्याय के ख़िलाफ़ बोलना जरूरी है। लेकिन हर विद्रोह का मतलब आक्रोश नहीं होता। कभी-कभी शांत लेकिन दृढ़ आवाज़ भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। यही आवाज बनी हैं शिवरानी देवी जी , जो है प्रेमचंद जी की पत्नी|


महिलाओं को अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और समाज को यह दिखाने की जरूरत है कि सहनशीलता उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि उनकी ताक़त है। लेकिन अब वह ताक़त चुप रहने में नहीं, बोलने में है।


तो हाँ, विद्रोह ज़रूरी है, पर समझदारी से, संवेदनशीलता के साथ...


P. S. I have used a translator for some of the above sentences as my written hindi is not as good as it looks in the review :)


Thank you @nayee_kitab_prakashan for bringing these stories to life after years of writing them.


Buy here : Pagli

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